BA Semester-1 History - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :325
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2628
आईएसबीएन :000000000

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बीए सेमेस्टर-1 इतिहास के नवीन पाठ्यक्रमानुसार प्रश्नोत्तर

प्रश्न- अशोक के शासन व्यवस्था की विवेचना कीजिए।

अथवा

मौर्य शासन प्रणाली में अशोक द्वारा किये गये सुधारों की व्याख्या कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अशोक का राजस्व सिद्धान्त बताइए।
2. अशोक का आदर्श बताइए।
3. अशोक के स्वशासन पर टिप्पणी कीजिए।
4. अशोक के पदाधिकारी कौन-कौन थे?
5. अशोक के निर्माण कार्य बताइए।

उत्तर-

अशोक का राजस्व सिद्धान्त
(Revenue Principle of Ashoka)

अशोक को उत्तराधिकारी के रूप में केवल एक विस्तृत साम्राज्य ही नहीं प्राप्त हुआ था अपितु सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था भी प्राप्त हुई थी, जो कुशल शासक चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा प्रतिपादित की गयी थी। अशोक को अपने पितामह चंद्रगुप्त मौर्य के शासन प्रबन्ध मे जो कुछ भी थोड़ा बहुत परिवर्तन करना पड़ा उसका मूल कारण उसकी नैतिकता एवं धार्मिकता थी।

अशोक का शासन निरंकुश परन्तु सदय (दयायुक्त) राजतंत्र था और अशाक ने अपने शासन प्रयोग में प्रजा के पितृत्व की विशेष पुट दी। राजा को उसने प्रजा का पिता कहा और तद्वत ही उसने स्वयं आचरण किया। अपने द्वितीय कलिंग लेख में वह कहता है कि "सारे मनुष्य मेरी सन्तान हैं और जिस प्रकार में अपनी सन्तति को चाहता हूँ कि वह सब प्रकार की समृद्धि और सुख इस लोक और परलोक में भोगे ठीक उसी प्रकार मैं अपनी प्रजा के सुख-समृद्धि की भी कामना करता हूँ। पहले की ही भाँति अब भी राजा को सम्मति प्रदान करने और शासन कार्य में उसका हाथ बँटाने के लिए एक मंत्रिपरिषद का सलाहकार प्राप्त था। प्रान्तीय शासक का रूप भी अशोक ने पूर्ववत् रखा।"

अशोक का आदर्श - अशोक एक आदर्श मानव था उसकी नैतिकता उसके जीवन की अनुशासिका थी। कलिंग विजय के पूर्व अशोक साम्राज्यवादी था, किन्तु रक्त प्लावित घटना के पश्चात् का अशोक पहले मानव और तब सम्राट था। कलिंग शिलालेख अशोक तथा धरती के संपूर्ण मनुष्यों के निकटतम संबंध का निर्देश इस प्रकार कहता है। "सब मनुष्य मेरे पुत्र हैं। अशोक ने अपने चौथे स्तम्भ लेख में प्रजा के प्रति गद्गद होकर अपने उद्गार इस प्रकार प्रकट किये, “जिस प्रकार मनुष्य अपनी सन्तान को निपुण धाय को सौंपकर निश्चित हो जाता है और सोचता है कि वह धाय मेरे बालक को सुख पहुंचाने की भरपूर चेष्टा करेगी उसी प्रकार प्रजा के हित और सुख के अभिप्राय से रज्जुक नामक कर्मचारी नियुक्त किये हैं।" अशोक ने प्रजा के हित के लिए निम्न लेख उत्कीर्ण किया था, "यह धर्म लेख चिरस्थायी हो और मेरी पत्नी, पुत्र तथा प्रपौत्र लोकहित के लिए प्रयत्न करें। अत्यधिक प्रयत्न के बिना यह कार्य बहुत कठिन है।'

स्वायत्त शासन (Local Self Government) - अशोक के 13वे शिलालेख के आधार पर कुछ इतिहासकारों ने ऐसा अनुमान लगाया है कि अशोक के अधीन कुछ ऐसे भी प्रदेश थे जो अप्रत्यक्ष रूप में तो अशोक की अधीनता स्वीकार करते थे किन्तु उन्हें स्वशासन का अधिकार प्राप्त था, जैसे यवन, कम्बोज, नाभपति, आन्ध्र भोज तथा पारिद आदि।

अभिलेखों से ज्ञात होता है कि अशोक के शासनकाल में तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसली (धोली) और सुवर्णगिरि (सोनागिरि) इस प्रकार के प्रान्तीय शासकों को नियुक्त किये जाते थे जैसे सौराष्ट्र की राजधानी गिरनार के लिए नियुक्त राजा तुषास्य यवन के प्रमाण से सिद्ध होता है। अनुमानतः यह कहा जा सकता है कि इन राजवर्गीय प्रान्तीय शासकों के भी अपने-अपने अमात्य थे, बिन्दुसार के समय मे तक्षशिला का विद्रोह इन्हीं अमात्यों के विरुद्ध हुआ था। साधारण छोटें प्रान्तों के शासक संभवतः रज्जुक कहलाते थे, जिनका उल्लेख अभिलेखों में हुआ है। इसी प्रकार प्रादेशिक आधुनिक कमिश्नरों की भांति विस्तृत भूखंडों के शासक थे। विविध विभागो के प्रधान साधारण रूप से 'मुख' अथवा महामात्र कहलाते थे विभाग का नाम प्रधान पद के साथ जोड दिया जाता था। उदाहरण के रूप में अन्तपुर, नगर और सीमा प्रान्त के महामात्र कहलाते थे। शासन के अन्य अधिकारी साधारणतः पुरुष संज्ञा से सम्बोधित होते थे और उनके निम्न तथा मध्य तीन वर्ग थे। इनसे भी निचले वर्ग के अधिकारियों की साधारण संज्ञा युक्त थी।

मन्त्रिपरिषद (Cabinent) - चंद्रगुप्त के शासन प्रबन्ध के विषय में ज्ञात होता है कि उसके शासन प्रबन्ध का मुख्य अंग मत्रिपरिषद थी। अशोक ने भी मंत्री परिषद स्थापित रखा। उसके छठे शिलालेख से ज्ञात होता है कि मंत्रिपरिषद को इस बात की स्वतंत्रता थी कि सम्राट से किसी गुट के विषय पर वाद-विवाद कर सके तथा अपना मत सम्राट को दे सके। उसकी (महायात्रा के) दान संबंधी अथवा मेरे द्वारा की गयी किसी मौखिक घोषणा के सम्बन्ध में अथवा महामात्रों के सुपुर्द कर दिये गये किसी आवश्यक कार्य के विषय में विवाद या सुधार का प्रस्ताव किया जाये तो उसकी सूचना मुझे उसी क्षण मिलनी चाहिए। मैं कहीं भी रहूँ और कोई भी समय हो।

प्रान्तीय शासन (Provincial Administration) - शासन के दृष्टिकोण से जैसाकि अभिलेखों से ज्ञात होता है कि संपूर्ण साम्राज्य चार केन्द्रों में विभाजित था - तक्षशिला, उज्जैनी, तोसली तथा सुवर्णगिरि। राजा का सहायक उपराजा होता था, जो राजकुलीन व्यक्ति होता था। अशोक का भाई तिव्य उसका उपराजा था। युवराज भी राजकाज में सम्राट की सहायता करता था। इसी प्रकार अग्रमात्य भी राजा का प्रमुख सहायक था, अशोक के समय में राधागुप्त अग्रमात्य थे। राजकुमारों से भी सम्राट शासन प्रबन्ध सहायता लेता था।

अशोक के पदाधिकारी (Officials of Ashoka) - अशोक के अभिलेखों से हमें विभिन्न प्रकार के पदाधिकारियों का बोध होता है। उनमें से अधिकाशतया कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उल्लिखित पदाधिकारियों से मिलते-जुलते हैं। केवल धर्म सम्बन्धी पदाधिकारी नवीन हैं। डॉ. हेमचंद्र राय चौधरी ने निम्नलिखित बारह प्रकार के पदाधिकारियों का उल्लेख किया है -

1 महामात्र, 2 राजुक, 3 रथिक, 4. प्रादेशिक, 5 युत अथवा युक्त, 6 पुलिस, 7 पतिवेतक, 8. भूमिक, 9. लिपिकार, 10 दूत, 11. आयुक्त, 12 कारणक।

अशोक के राजस्व सिद्धान्त के विषय में यह ज्ञात होता है कि राजा का प्रमुख कर्तव्य प्रजा की सेवा करना होता था। सर्वप्रथम उसने धर्म महामात्रों की नियुक्ति की जो प्रजा के भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए प्रयत्न करते थे। राज्य के प्रधान कर्मचारी राजुक प्रादेशिक, युक्त आदि पंचवर्षीय अथवा त्रिवर्षीय अनुसंधान (दौरा) किया करते थे जिससे वे ग्रामीण जनता के निकट सम्पर्क में आकर उनकी आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक समस्याओं का अध्ययन कर सकें। अशोक ने अपने पडोसी जातियो के अभयदान की घोषणा इस प्रकार की "सीमान्त जातियाँ मुझसे न भय खायें, मुझ पर विश्वास करें और मुझसे सुख प्राप्त करें। वे कभी दुःख न पावें तथा इस बात का सदैव विश्वास रखें कि जहाँ तक क्षमा करना संभव है राजा उनके साथ करेगा।

पशुवध निषेध इस क्षेत्र मे नवीन तथा महत्वपूर्ण सुधार था। भारतीय इतिहास तो क्या विश्व इतिहास में भी कोई ऐसा सम्राट नहीं मिलता जिसने पशुवध निषेध की चेष्टा की हो और इस कार्य में इतना अधिक सफल हुआ हो। प्रजा के हित के लिए प्राचीन भारत के अधिकांश सम्राटों ने अनेक कार्य किये। किन्तु सम्राट अशोक के कार्यों के सम्मुख उनके कार्य फीके पड़ते हैं। अशोक के शासन प्रबन्ध में नैतिकता प्रधान धार्मिकता की छाप थी। जिन नये पदाधिकारियों की नियुक्ति अशोक द्वारा की गयी वे राजनीतिक क्षेत्र में भले ही महत्वपूर्ण कार्य न कर सके हो पर सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक क्षेत्र में उन्होंने प्रशंसनीय कार्य किया।

अशोक के निर्माण कार्य (Constructive Work of Ashoka) - अशोक केवल धार्मिक क्षेत्र में ही अद्वितीय प्रगति नही कर गया था अपितु वास्तुकला के क्षेत्र में भी उसने सबसे महान कार्य किया था। उसने नगरों का निर्माण तथा उन्हें सुसज्जित करने की पूरी कोशिश की थी। अनुश्रुतियों के आधार पर अशोक ने काश्मीर में श्रीनगर तथा नेपाल में ललिता पाटन नगरों का निर्माण कराया था। फाह्यान के लेखानुसार उसने राजभवन और राजधानी के संबंध में भी अधिक निर्माण कार्य किये। अपने सुविस्तृत साम्राज्य में बुद्ध के अस्थि अवशेषों की रक्षा के लिए उसने अनन्त स्तूप बनवाये। इसके अतिरिक्त उसने भिक्षुओं के आवास के लिए विहार तथा दरीगृहों का भी निर्माण कराया। दुर्भाग्यवश उसकी इमारतों के भग्नावशेष अत्यन्त अल्पसंख्यक है। उसके निर्माण क्षेत्र मे विशिष्ट स्थान उन विशाल स्तम्भों का है जो चुनार के पत्थर से बने हैं, जो तौल में प्रायः 50 टन हैं और जिनकी साधारण ऊंचाई 40 से 50 फीट तक की हैं। ये नीचे चौडे तथा ऊपर पतले हैं और एक ही पत्थर से निर्मित हैं। उनका शीर्ष उस शैली से बना है जिनको लाक्षणिक रूप से ईरानी घंटा शीर्ष कहते हैं। परन्तु इतिहासकार हैवेल ने इसे उल्टा कमल कहा है। इन स्तम्भों के अन्य भाग अन्य प्रतीकों से सुशोभित हैं। शीर्ष का भेरीनुमा सामना विविध आकृतियों से आभूषित है और ऊपर सिंह, वृषभ, गज तथा अश्व में से कोई सर्वतोभद्रिका आकृति तक्षित है।

इन आकृतियों का निर्माण कार्य इतना स्वाभाविक, अदभुत और सजीव हुआ है कि विद्वानों ने तो यहाँ तक कह डाला है कि यह कला विदेशी ग्रीक अथवा पारसी शैली से प्रभावित हुई थी। इसमे सन्देह नहीं है कि इन स्तम्भों की मूर्तिकला की जब पारखम यक्ष की मूर्ति से तुलना की जाती है तब सर्वथा एक पहेली खड़ी होती है और जब तक कि हम उसका मूल विदेशी शैली में स्थापित न करे अथवा यह न मान लें कि तब भारत में सहसा कला का एक स्रोत फूट पड़ा था, दूसरी बात यह है कि इन स्तम्भों के ऊपर की पालिश इतनी अद्भुत है कि वह दर्शकों को अचरज में डाल देती है। इसी भ्रम में पड़कर कुछ इतिहासकारों ने इन्हें धातु निर्मित समझ लिया था। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस प्रकार की पालिश पाश्चात्य कला में नहीं मिलती है। जो हमें इस निष्कर्ष को स्वीकार करने में विवश करती है कि अशोक के बाद संभवत इसका लोप हो गया। विन्सेन्ट स्मिथ ने सही कहा है कि इन स्तम्भों का निर्माण स्थानान्तरण और स्थापना मौर्ययुगीन शिल्प आचार्यों और तक्षकों की बुद्धि और कुशलता के प्रति अदभुत प्रमाण प्रतिष्ठित करते हैं।

 

समाज - अशोक के अभिलेखों से तत्कालीन समाज पर भी कुछ प्रभाव पड़ता है। उनसे विदित होता है कि धार्मिक सम्प्रदायों में मुख्य रूप से ब्राह्मण, श्रमण और अन्य पाषण्ड थे और इनमें प्रमुख आजीविक और निग्रन्थ (जैन) थे, ये ज्ञान का प्रसार उपदेश तथा कथोपकथन द्वारा करते थे। इनके अतिरिक्त ये गृहस्थ तो थे ही। अभिलेखों में चार वर्णों का उल्लेख हुआ है। ये हैं ब्राह्मण, सैनिक और उनके सामत (भटमाय) जो क्षत्रिय थे, इभ्व अथवा वैश्य (पंचम शिलालेख) और दास तथा सेवक (दासभटक) अर्थात् शूद्र। सौभाग्य से ये लोग अनेक अनुष्ठान करते थे और परलोक अथवा स्वर्ग में भी उनकी आस्था थी। पशु वध के विरुद्ध अशोक के अनेक नियमों और प्रतिबन्धों से विदित होता है कि तत्कालीन समाज में मांस भक्षण साधारणतः होता था। यदि स्वयं अशोक के उदाहरण से निष्कर्ष निकाला जाये तो निःसन्देह कहा जा सकता है कि अभिजात वर्ग बहुपत्नी विवाह का समर्थक था। पंचम शिलालेख में उल्लि

प्रश्न- 'भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है? प्रकाश डालिए।

 अथवा

अशोक का मूल्यांकन कीजिए।

अथवा

अशोक महान था, तर्कों द्वारा स्पष्ट कीजिए।

अथवा

अशोक महानतम था। अपने विचारों से स्पष्ट कीजिए।

अथवा

शासक के रूप में अशोक का मूल्यांकन कीजिए।

अथवा

'अशोक महान था' इस कथन की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. अशोक का भारतीय इतिहास में क्या स्थान है?
2. अशोक की महानता के कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-

अशोक का भारतीय इतिहास में स्थान
(Place of Ashoka in Indian History)

अशोक निःसन्देह प्राचीन जगत में महानतम् व्यक्तियों में से है। इतिहास के महान व्यक्ति कन्सटेनटाइन, मार्क्स आरिलियस, अकबर खलीफा, उमर और दूसरों के साथ उसकी तुलना की गयी है। ये तुलना वास्तव में सर्वथा उचित नहीं है। अशोक उदारता की मूर्ति था और मानवता का सदा पुजारी रहा। उसकी सहानुभूति और स्नेह मानव जगत को लाघ प्राणिमात्र तक पहुंचते थे। उसको अपने कर्त्तव्य का गहरा ध्यान रहता था। जिस कारण उसने अपने पद और स्थान से सम्बन्धित सुख तक को त्याग दिया और जिसके संपादन के लिए वह निरन्तर श्रम करता था, हर घड़ी और हर स्थान पर शासन के कार्यों और प्रजा के कल्याण हेतु वह सदैव तत्पर रहता था। अपने साम्राज्य के सारे साधन उसने मनुष्यमात्र के दुख मोचन और अपने 'धम्म' के प्रचार के लिए लगाये। वस्तुतः प्राणिमात्र विशेषकर अपनी प्रजा के हित और सुख की भावना उसके जीवन में इतनी प्रबल हो गयी थी कि अपने कार्यों और परिश्रम से वह कभी सन्तुष्ट न हो पाता था। उसके शासनकाल में कला को अदभुत शक्ति और स्फूर्ति मिली और पाली अथवा मागधी जिनमें उसके अभिलेख खुदे हैं भारत की राष्ट्र भाष बन गयी, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि अशोक की 'धम्म विजय' संबंधी नीति के कारण राजनीतिक महत्ता को अवश्य धक्का लगा।

कलिंग विजय के बाद उसने मौर्य प्रशासन नीति को रोक दिया और इस प्रकार अपने 'धम्म विजय के कारण मगध का विस्तार भी रोक दिया। जनता का सामरिक उत्साह जो ठंडा पड़ गया उससे देश विदेशी लुटेरों का शिकार हो चला। भारत की उत्तरी सीमा के समीप ही बाख्त्री (बल्हीक) में ग्रीकों का एक उपनिवेश राज्य था। उस आधार से उन राजाओं के आक्रमण का आरम्भ हुआ। भारतीय इतिहास में हिन्दू ग्रीक कहते हैं। शीघ्र उन विदेशियों की चोटों से भारत क्षत-विक्षत हो उठा और इसका दूरस्थ कारण निःसन्देह अशोक की अराजनीतिक करुण नीति थी। डॉ. रीज डेविस के अनुसार अशोक की तुलना कान्स्टेनटाइन से करके उसे बौद्ध धर्म के पतन के लिए उत्तरदायी ठहराना तर्कसंगत नहीं है। डॉ. आर. के. मुकर्जी का कथन है कि संपूर्ण इतिहास मं  कोई भी राजा ऐसा नही, जिसका जीवन 'मानव अशोक' या राजा अशोक की तुलना में लाया जा सके। सम्राट अशोक की महत्ता को स्पष्ट करने के लिए उसकी तुलना इतिहास की अन्य विभूतियों से की गयी है। इस तुलना में अशोक के सम्मुख अनेक नवीन और प्राचीन ईसाई, यवन, आस्तिक तथा नास्तिक आदि अनेक व्यक्तियों को खड़ा किया गया है। अपने संपूर्ण राय में बौद्ध धर्म को स्थापित करने की अशोक की अभिलाषा उसे इजराईल के डेविड और सोलोमन के सम्मुख ला खड़ी करती है। इन दो राजाओं के राज्यकाल में इजराईल उन्नति के शिखर पर था। अशोक ने स्थानीय धर्म को विश्व धर्म का रूप दे डाला था।"

अतः इस दृष्टि से अशोक के उपदेश आलिवर क्रामवेल के भाषणों से मिलते हैं। अन्त में उसे खलीफा उमर और सम्राट अकबर के सम्मुख खड़ा किया जा सकता है।

डॉ. आर. के. मुकर्जी तथा डॉ. भंडारकर महोदय ने बताया है कि अशोक ने बौद्ध धर्म को एक स्थानीय धर्म से विश्वव्यापी धर्म बनाया था। मैकपेल (Macphail) ने अपनी पुस्तक में अशोक की तुलना  मार्क्स आरलिपस, इण्डोनियस से की है जिसने 121 ई. से 180 ई. तक रोम में शासन किया था। यद्यपि यह व्यक्तिगत सदाचार के लिए अशोक की कोटि में रखा जाता है परन्तु आदर्श की श्रेष्ठता तथा उत्साह एवं लगन की उत्कृष्टता के प्रदर्शन में भारतीय सम्राट आरलिपस को मात कर देता है। अशोक ने संपूर्ण मानव समाज की उन्नति एवं प्रगति के लिए अथक प्रयास किया था। अतएव आरलिपस से उसकी तुलना नहीं की जा सकती है।

विश्व के महान इतिहासकार विश्व के महानतम सम्राट अलेक्जेण्डर, महान सीजर एवं नेपोलियन से अशोक की समता करते हैं। वे वस्तुतः अशोक से बढ़-चढ़कर वीर योद्धा एवं शासक थे परन्तु किसी भी योद्धा एवं शासक में महान होना सम्राट अशोक की उपाधि से विभूषित नहीं किया जा सकता है। एच. जी. वेल्स ने कहा है -

"What were their permanent contribution to humanity there three who have appropriated to themselves so many of the pages of our history?"

इन तीनों व्यक्तियों ने राष्ट्र के लिए यद्यपि बहुत कुछ किया परन्तु मानवता के कल्याण के लिए तीनों ने कार्य नहीं किया। अशोक के संबंध में सबसे बड़ी बात यह है कि बौद्ध धर्म के प्रति उसके असीम उत्साह ने उसे कभी राजा के कर्त्तव्य से च्युत नहीं होने दिया। वस्तुतः सारे संसार के प्राचीन और अर्वाचीन महान राजाओ में उसकी गणना की जा सकती है। अशोक की महानता के निम्नलिखित कारण दृष्टिगोचर होते हैं -

1. एक महान आदर्श विजेता (A Great and Idealist Conquerors) - अन्य सम्राटों के समान अशोक की विजय शक्ति पर आधारित न होकर अहिंसा और शान्ति पर आधारित थीं। कलिंग का युद्ध उसके जीवन का प्रथम और अन्तिम युद्ध था। इसके पश्चात् उसने अपनी तलवार को सदैव के लिए म्यान में बन्द कर दिया था। इस प्रकार अशोक मानव हृदय विजेता था।

2. एक महान शासक (A Great Administration) - अशोक की शासन व्यवस्था आध्यात्मिकता पर आधारित थी। उसने झूठ और अन्धकार की ओर अग्रसर होती हुई प्रजा को सत्य, ज्ञान और आलोक का मार्ग दिखाया था। उसने अपने अधिकारियों के सामने अपने चरित्र का आदर्श प्रस्तुत करते हुए उनके आध्यामिक स्तर को विकसित किया था। उसने पग-पग पर प्रजा की भलाई के लिए कार्य किया। उसका कथन था कि "सर्व लोकहित से बढ़कर किसी का कोई भी दूसरा कर्त्तव्य नहीं है।"

3. एक महान धर्मपरायण व्यक्ति (A Great Religiousman) - ऐतिहासिक रंगमंच पर संभवत: बहुत कुछ ऐसे सम्राट अवतरित हुए है जिन्होने आध्यात्मिकता को मूलमंत्र मानकर विश्व कल्याण के लिए प्रयास किया है। अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बुद्ध और संघ की शरण में जाकर मन, वचन और कर्म द्वारा भगवान बुद्ध के उपदेशों का प्रचार किया। उसने राजप्रासादों के वैभव और विलासितापूर्ण जीवन को त्यागकर सरल और सादा जीवन व्यतीत किया था।

4. धार्मिक सहिष्णुता (Religious Harmony) - बौद्ध धर्मावलम्बी होते हुए भी अशोक ने अपने व्यक्तिगत विचार को जनता पर थोपने का प्रयास नहीं किया था। उसका धार्मिक दृष्टिकोण उदार था। वह सभी धर्मों को समान आदर देता था। इसकी धार्मिक सहिष्णुता के विषय में डॉ. हेमचंद राय चौधरी का कथन है कि उसने ऐसे युग में धार्मिक सहिष्णुता तथा मेलजोल के सद्गुणों के उपदेश दिये थे जब धार्मिक कट्टरता अत्यधिक थी।

5. राष्ट्रीय एकता का नायक (Hero of National Unity) - अशोक ने साम्राज्य की जनता को राजनीतिक एकता के सूत्र मे बाधा था। वह भारत का पहला सम्राट था जिसने राजनीतिक एकता के अभाव में सुदृढ साम्राज्य स्थापित करने की सोची थी। उसने सम्पूर्ण राज्य के लिए एक ही भाषा का प्रयोग करने की व्यवस्था की थी।

6. एक महान आदर्शवादी (A Great Idealist) - अपने जीवन के संपूर्ण क्षणों तक वह आदर्शवादी बनकर कार्य करता रहा। राजनीतिक क्षेत्र में विजेता और कुशल शासक होने के साथ धार्मिक क्षेत्र में वह उदार और सहिष्णु भी था। उसने "वसुधैव कुटुम्बकम" के सिद्धान्त का प्रचार किया। ये विशेषतायें विश्व के किसी सम्राट में नहीं मिलती हैं।

7. प्रजावत्सलता (Love of the Subject)- अशोक की महानता का कारण उसकी प्रजावत्सलता भी थी। वह अपनी प्रजा को सन्तान तुल्य मानता था. कलिंग विजय के बाद उसने अपने अभिलेखो में लिखा है कि "सभी मनुष्य मेरी सन्तान हैं। जिस प्रकार मैं चाहता हूँ कि मेरी सन्तति इस लोक और परलोक में सब प्रकार की समृद्धि और सुख भोगे ठीक उसी प्रकार मैं अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि की कामना करता हूँ।

8. अशोक के शासन सुधार (Ruling Improvements by Ashoka) - अशोक ने अपने बाबा चंद्रगुप्त मौर्य की कठोर शासन व्यवस्था में कुछ सुधार किये थे। उसने कठोर व्यवस्था को नर्म और सरल बनाने का प्रयास किया था। चंद्रगुप्त मौर्य के समय दंड विधान कठोर थे परन्तु अशोक ने दंड व्यवस्था को कुछ शिथिल कर दिया था।

9. कला का उन्नायक (A Promoter of Art)- उसके शासनकाल में कला की बडी उन्नति हुई। उसने धर्म प्रचार का साधन कला को मानकर अनेक भवन, स्तम्भ, अभिलेख और बौद्ध बिहार बनवाये थे। न केवल कला की दृष्टि से वरन् ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अभिलेखों का बड़ा महत्व है।

10. एक महान जनसेवक (A Great Public Servant ) - उसने न केवल मनुष्य के लिए वरन् पशुओं तक के लिए औषधालय खुलवाये थे। उसने लोगों के आवागमन के लिए अनेक सड़कें बनवायी। सड़को पर छायादार एव फलदार वृक्ष लगवाये और यात्रियों की सुविधा के लिए स्थान-स्थान पर कुये तथा धर्मशालाये बनवायी। उसने न्याय तथा दान के क्षेत्र में धर्म महामात्यों की नियुक्ति की थी। उसने पशु-हत्या और मदिरापान पर प्रतिबन्ध लगाकर प्रजा का नैतिक स्तर उठाने का प्रयत्न किया था।

उपरोक्त कार्यों और आदर्शों के कारण अशोक की तुलना विश्व के महान सम्राटों में सिकन्दर, सेण्टपाल आदि से की जाती है। परन्तु इनमें से एक भी सम्राट उसके समकक्ष होने का अधिकारी नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- ऐतिहासिक युग के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता का परिचय दीजिए व भारत में उसके बाद विकसित होने वाली सभ्यता व संस्कृति को चित्रित कीजिए।
  3. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहाकार कल्हण व आर. सी. मजूमदार का परिचय दीजिए।
  4. प्रश्न- भारतीय ज्ञान प्रणाली के स्रोत पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- जदुनाथ सरकार, वी. डी. सावरकर, के. पी. जायसवाल का परिचय दीजिए।
  6. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार मृदुला मुखर्जी के बारे में बताइए।
  7. प्रश्न- भारत संस्कृति (भाषाओं) के ज्ञान से अवगत कराइये।
  8. प्रश्न- नृत्य व रंगमंच की भारतीय संस्कृति से अवगत कराइये।
  9. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता से मगध राज्य तक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार विपिनचन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- मध्य पाषाण समाज और शिकारी संग्रहकर्ता पर टिप्पणी कीजिए।
  12. प्रश्न- ऊपरी पुरापाषाण क्रांति क्या थी?
  13. प्रश्न- प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  14. प्रश्न- पाषाण युग की जीवनशैली किस प्रकार की थी?
  15. प्रश्न- के. पी. जायसवाल के विशिष्ट कार्यों से अवगत कराइये।
  16. प्रश्न- वी. डी. सावरकर के धार्मिक और राजनीतिक विचार से अवगत कराइये।
  17. प्रश्न- लोअर पैलियोलिथिक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में आप क्या समझते हैं? 'हड़प्पा संस्कृति' के निर्माता कौन थे? बाह्य देशों के साथ उनके सम्बन्धों के विषय में आप क्या समझते हैं?
  19. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के सामाजिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के आर्थिक जीवन के विषय में विस्तारपूर्वक बताइये।
  21. प्रश्न- सिन्धु नदी घाटी के समाज के धार्मिक व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की राजनीतिक व्यवस्था एवं कला का विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर-विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  26. प्रश्न- हड़प्पा संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  28. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  30. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  31. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  32. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता में शिवोपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- सैन्धव धर्म में स्वस्तिक पूजा के विषय में बताइये।
  35. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विनाश के क्या कारण थे?
  36. प्रश्न- लोथल के 'गोदी स्थल' पर लेख लिखो।
  37. प्रश्न- मातृ देवी की उपासना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- 'गेरुए रंग के मृदभाण्डों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- 'मोहन जोदडो' का महान स्नानागार' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  40. प्रश्न- ऋग्वैदिक अथवा पूर्व-वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति के बारे में आप क्या जानते हैं?
  41. प्रश्न- विवाह संस्कार से सम्पादित कृतियों का वर्णन कीजिए तथा महत्व की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन समाज में हुए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- वैदिक कालीन समाज की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  45. प्रश्न- वैदिक साहित्य के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  46. प्रश्न- ब्रह्मचर्य आश्रम के कार्य व महत्व को समझाइये।
  47. प्रश्न- वानप्रस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
  48. प्रश्न- सन्यास आश्रम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- मनुस्मृति में लिखित विवाह के प्रकार लिखिए।
  50. प्रश्न- वैदिक काल में दास प्रथा का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- पुरुषार्थ पर लघु लेख लिखिए।
  52. प्रश्न- 'संस्कार' पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- गृहस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
  54. प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  56. प्रश्न- वैदिककाल में विवाह तथा सम्पत्ति अधिकारों की क्या स्थिति थी?
  57. प्रश्न- उत्तर वैदिककाल की राजनीतिक दशा का उल्लेख कीजिए।
  58. प्रश्न- विदथ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- ऋग्वेद पर टिप्पणी कीजिए।
  60. प्रश्न- आर्यों के मूल स्थान पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- 'सभा' के विषय में आप क्या जानते हैं?
  62. प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
  63. प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- नन्द कौन थे? महापद्मनन्द के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न. बिम्बिसार की राज्यनीति का वर्णन कीजिए तथा परिचय दीजिए।
  67. प्रश्न- उदयिन के जीवन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- नन्द साम्राज्य की विशालता का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- धननंद और कौटिल्य के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- धननंद के विषय में आप क्या जानते हैं?
  71. प्रश्न- मगध की भौगोलिक सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- मौर्य कौन थे? इस वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का उल्लेख कीजिए तथा महत्व पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों और शासन व्यवस्था पर निबन्ध लिखिए।
  74. प्रश्न- सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- मौर्यकाल में सम्राटों के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन का वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- सुदर्शन झील पर टिप्पणी लिखिए।
  78. प्रश्न- अशोक के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताइये कि वह किस प्रकार सिंहासन पर बैठा था?
  79. प्रश्न- सम्राट अशोक के साम्राज्य विस्तार पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- सम्राट के धम्म के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कीजिए।
  81. प्रश्न- अशोक के शासन व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- 'भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है? प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
  84. प्रश्न- अशोक ने धर्म प्रचार के क्या उपाय किये थे? स्पष्ट कीजिए।
  85. प्रश्न- सारनाथ स्तम्भ लेख पर टिप्पणी कीजिए।
  86. प्रश्न- बृहद्रथ किस राजवंश का शासक था और इसके विषय में आप क्या जानते हैं?
  87. प्रश्न- कौटिल्य और मेगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- कौटिल्य की पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में उल्लेखित विषयों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- कौटिल्य रचित 'अर्थशास्त्र' में 'कल्याणकारी राज्य' की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- गुप्तों की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  91. प्रश्न- काचगुप्त कौन थे? स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से लिखिए।
  94. प्रश्न- कल्याणी के उत्तरकालीन पश्चिमी चालुक्य को समझाइए।
  95. प्रश्न- गुप्त शासन प्रणाली पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  96. प्रश्न- गुप्तकाल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- गुप्तों के पतन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- गुप्तों के काल को प्राचीन भारत का 'स्वर्ण युग' क्यों कहते हैं? विवेचना कीजिए।
  99. प्रश्न- रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
  100. प्रश्न- गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के विषय में बताइए।
  101. प्रश्न- आर्यभट्ट कौन था? वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- राजा के रूप में स्कन्दगुप्त के महत्व की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- कुमारगुप्त पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- कुमारगुप्त प्रथम की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर प्रकाश डालिए।
  106. प्रश्न- कालिदास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  107. प्रश्न- विशाखदत्त कौन था? वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- स्कन्दगुप्त कौन था?
  109. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आपसूक्ष्म में बताइए।
  110. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों की उत्पत्ति का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  111. प्रश्न- मिहिरभोज की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  112. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न-
  114. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम के शासन-काल का विवरण दीजिए।
  115. प्रश्न- वत्सराज की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास में नागभट्ट द्वितीय के स्थान का मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- मिहिरभोज की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार सत्ता का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों का विघटन पर प्रकाश डालिये।
  120. प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास जानने के साधनों का उल्लेख कीजिए।
  121. प्रश्न- महेन्द्रपाल प्रथम कौन था? उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए। उत्तर -
  122. प्रश्न- राजशेखर और उसकी कृतियों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  123. प्रश्न- राज्यपाल तथा त्रिलोचनपाल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष में प्रतिहारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  125. प्रश्न- कन्नौज के प्रतिहारों पर एक निबन्ध लिखिए।
  126. प्रश्न- प्रतिहार वंश का महानतम शासक कौन था?
  127. प्रश्न- गुर्जर एवं पतन का विश्लेषण कीजिये।
  128. प्रश्न- कीर्तिवर्मा द्वितीय एवं बादामी के चालुक्यों के अन्त पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- चालुक्य राज्य के अंधकार काल पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- पूर्वी चालुक्य शासकों ने कला और संस्कृति में क्या योगदान दिया है?
  131. प्रश्न- चालुक्य कौन थे? इनकी उत्पत्ति के बारे में बताइए।
  132. प्रश्न- वेंगी के पूर्व चालुक्यों पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- चालुक्यकालीन धर्म एवं कला का वर्णन कीजिए।
  134. प्रश्न- चालुक्यों की विभिन्न शाखाओं का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- चालुक्य संघर्ष के विषय में आप क्या जानते हैं?
  136. प्रश्न- कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों की शक्ति के प्रसार का विवरण दीजिए।
  137. प्रश्न- चालुक्यों की उपलब्धियों के महत्व का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चालुक्यों की शासन व्यवस्था का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- चालुक्य- पल्लव संघर्ष का विवरण दीजिए।
  140. प्रश्न- परमारों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
  141. प्रश्न- राजा भोज के शासन काल में चतुर्दिक उन्नति हुई।
  142. प्रश्न- परमार नरेश वाक्पति II मुंज के शासन काल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  143. प्रश्न- राजा भोज के शासन प्रबंध के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइए।
  144. प्रश्न- परमार वंश के पतन पर प्रकाश डालिए तथा इस वंश का पतन क्यों हुआ?
  145. प्रश्न- परमार साहित्य और कला की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- परमार वंश का संस्थापक कौन था?
  147. प्रश्न- मुंज परमार की उपलब्धियों का आंकलन कीजिए।
  148. प्रश्न- 'धारा' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  149. प्रश्न- सीयक द्वितीय 'हर्ष' के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  150. प्रश्न- सिन्धुराज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  151. प्रश्न- परमारों के पतन के कारण बताइए।
  152. प्रश्न- राजा भोज एवं चालुक्य संघर्ष का वर्णन कीजिये।
  153. प्रश्न- राजा भोज की सांस्कृतिक उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।
  154. प्रश्न- परमार इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए।
  155. प्रश्न- भोज परमार की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
  156. प्रश्न- परमारों की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिये।
  157. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
  158. प्रश्न- अर्णोराज चाहमान के जीवन एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  159. प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियों की समीक्षा कीजिए। मोहम्मद गोरी के हाथों उसकी पराजय के क्या कारण थे? उल्लेख कीजिए।
  160. प्रश्न- चाहमान कौन थे? विग्रहराज चतुर्थ के विजयों का वर्णन कीजिए।
  161. प्रश्न- चाहमान कौन थे?
  162. प्रश्न- विग्रहराज द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  163. प्रश्न- अजयराज चाहमान की उपलब्धियों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  164. प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की सैनिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  165. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  166. प्रश्न- पृथ्वीराज और जयचन्द्र की शत्रुता पर प्रकाश डालिये।
  167. प्रश्न- ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में पृथ्वीराज रासो के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  168. प्रश्न- चाहमान वंश का प्रसिद्ध शासक आप किसे मानते हैं?
  169. प्रश्न- चाहमानों के विदेशी मूल का सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  170. प्रश्न- पृथ्वीराज तृतीय के चन्देलों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  171. प्रश्न- गोविन्द चन्द्र गहड़वाल की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  172. प्रश्न- गहड़वालों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
  173. प्रश्न- जयचन्द्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  174. प्रश्न- अर्णोराज के राज्यकाल की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
  175. प्रश्न- चाहमानों (चौहानों) के राजनीतिक इतिहास का वर्णन कीजिए।
  176. प्रश्न- ललित विग्रहराज नाटक पर नोट लिखिए।
  177. प्रश्न- चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय के तराइन युद्धों का वर्णन कीजिए।
  178. प्रश्न- चौहान वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  179. प्रश्न- सामंतवाद पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  180. प्रश्न- सामंतवाद के पतन के कारण बताइए।
  181. प्रश्न- प्राचीन भारत में सामंतवाद की क्या स्थिति थी?
  182. प्रश्न- मौर्य प्रशासन और सामंतवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  183. प्रश्न-
  184. प्रश्न- वेदों की उत्पत्ति के विषय में बताइए। वेदों ने हमारे जीवन को किस प्रकार के ज्ञान दिये?
  185. प्रश्न- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए
  186. प्रश्न- हिन्दू वर्ग की जाति-व्यवस्था व त्योहारों के विषय में बताइए।
  187. प्रश्न- 'लिंगायत'' के बारे में बताइए।
  188. प्रश्न- हिन्दू धर्म के सुधारकों के विषय में बताइए।
  189. प्रश्न- हिन्दू धर्म में आत्मा से सम्बन्धित विचारों से अवगत कराइये।
  190. प्रश्न- हिन्दुओं के मूल विश्वासों से अवगत कराइए।
  191. प्रश्न- उपवास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  192. प्रश्न- हिन्दू धर्म में लोगों के गाय के प्रति कर्तव्य से अवगत कराइये।
  193. प्रश्न- हिन्दू धर्म में
  194. प्रश्न- मुहम्मद गोरी के भारत आक्रमण का वर्णन कीजिए।
  195. प्रश्न- मुहम्मद गोरी की भारत विजय के कारणों की सुस्पष्ट व्याख्या कीजिए।
  196. प्रश्न- राजपूतों के पतन के कारणों की विवेचना कीजिए।
  197. प्रश्न- मुस्लिम आक्रमण के समय उत्तर की राजनीतिक स्थिति का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  198. प्रश्न- महमूद गजनवी के भारतीय आक्रमणों का वर्णन कीजिए।
  199. प्रश्न- भारत पर मुहम्मद गोरी के आक्रमण के क्या कारण थे?
  200. प्रश्नृ- गोरी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा कैसी थी?
  201. प्रश्न- गोरी के आक्रमण के समय भारत की सामाजिक स्थिति का संक्षिप्त वर्णन करें।
  202. प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारत की आर्थिक स्थिति पर टिप्पणी लिखें।
  203. प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारतीय शासकों के तुर्कों से पराजय के क्या कारण थे?
  204. प्रश्न- भारत में तुर्की राज्य स्थापना के क्या परिणाम हुए?
  205. प्रश्न- मुहम्मद गोरी का चरित्र-मूल्यांकन कीजिए।
  206. प्रश्न- अरबों की असफलता के क्या कारण थे?
  207. प्रश्न- अरब आक्रमण का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
  208. प्रश्न- तराइन के प्रथम युद्ध पर प्रकाश डालिए।
  209. प्रश्न- भारत पर तुर्कों के आक्रमण के क्या कारण थे?
  210. प्रश्न- महमूद गजनवी का आनन्दपाल पर आक्रमण का वर्णन कीजिये।
  211. प्रश्न- महमूद गजनवी का कन्नौज पर आक्रमण पर प्रकाश डालिये।
  212. प्रश्न- महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ का विध्वंस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। [
  213. प्रश्न- महमूद गजनवी के आक्रमण के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  214. प्रश्न- भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमण के परिणामों पर टिप्पणी कीजिए।
  215. प्रश्न- मोहम्मद गोरी की विजयों के बारे में लिखिए।
  216. प्रश्न- भारत पर तुर्की आक्रमण के प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।

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